Hanuman Chalisa: हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें पाठ | हनुमान चालीसा पढने का नियम | हनुमान चालीसा का पाठ कितने बजे करना चाहिए? | हनुमान चालीसा कितने दिन में सिद्ध हो जाता है? | इस विधि से करें हनुमान चालीसा पाठ,सिद्ध होगा हर काम |
हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए मंगलवार या शनिवार का दिन उत्तम माना गया है.इस दिन हनुमान चालीसा पाठ का विशेष महत्व है. लेकिन चालीसा करने का सही विधि क्या है? किस प्रकार से करनी चाहिए हनुमान जी की पूजा.इन सभी विषयों पर विस्तृत जानकारी आज हम आपको देने जा रहे हैं.
हनुमान चालीसा का पाठ कैसे करें Hanuman Chalisa Ka Path Kaise Karen
हनुमान जी चालीसा शुरू करने से पहले आपको कुछ जरुरी नियमों का अवश्य पालन करना चाहिए.बजरंगबली को संकटमोचन भी कहा जाता है,क्यूंकि हनुमान जी अपने भक्तों का संकट/दुःख तुरंत हर लेते हैं.यदि आप शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो सबसे पहले प्रातः काल में उठकर स्नान करें.स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.वस्त्र धारण करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले हनुमान जी के मूर्ति या फोटो के सम्मुख आसन लगाकर बैठ जाएँ.चमेली के तेल और सिंदूर से भगवान हनुमान को श्रृंगार करें.चालीसा पाठ आरंभ करने से पहले हनुमान जी का स्मरण करें और फोटो या मूर्ति के सामने कलश में जल रखें.शनिवार और मंगलवार के दिन सुबह और शाम को हनुमान चालीसा करना उत्तम माना गया है.हनुमान चालीसा पाठ करने के बाद कलश के जल को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों में बाँट दें.घर के कोने में भी उसी जल का छिडकाव भी करें,इससे घर की नकरात्मक उर्जा समाप्त होती है.
हनुमान चालीसा का महत्व Importance of Hanuman Chalisa
हनुमान चालीसा करने से शनि की अशुभता दूर होती है.मान्यता है की शनिदेव ने हनुमान जी को वचन दिया था की वह उनके भक्तों को परेशांन नहीं करेंगे.इसलिए शनी साढ़े साती और शनी महादशा में हनुमान जी के पूजा करने की सलाह दी जाती है.
हनुमान चालीसा का पाठ कितने बजे करना चाहिए
शास्त्रों के अनुसार यह पाठ सूर्योदय से पूर्व प्रातः चार बजे शुरू कर देना चाहिए.
श्री हनुमान चालीसा | Shri Hanuman Chalisa in Hindi |
दोहा
श्री गुरु चरण सरोज रज निजमन मुकुर सुधारि ।
वरणौ रघुवर विमलयश जो दायक फलचारि ॥
बुद्धिहीन तनुजानिकै सुमिरौ पवन कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीश तिहु लोक उजागर ॥ 1 ॥
रामदूत अतुलित बलधामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ 2 ॥
महावीर विक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3 ॥
कंचन वरण विराज सुवेशा ।
कानन कुंडल कुंचित केशा ॥ 4 ॥
हाथवज्र औ ध्वजा विराजै ।
कांथे मूंज जनेवू साजै ॥ 5॥
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महाजग वंदन ॥ 6 ॥
विद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिवे को आतुर ॥ 7 ॥
प्रभु चरित्र सुनिवे को रसिया ।
रामलखन सीता मन बसिया ॥ 8॥
सूक्ष्म रूपधरि सियहि दिखावा ।
विकट रूपधरि लंक जलावा ॥ 9 ॥
भीम रूपधरि असुर संहारे ।
रामचंद्र के काज संवारे ॥ 10 ॥
लाय संजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुवीर हरषि उरलाये ॥ 11 ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडायी ।
तुम मम प्रिय भरत सम भायी ॥ 12 ॥
सहस्र वदन तुम्हरो यशगावै ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥ 13 ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
नारद शारद सहित अहीशा ॥ 14 ॥
यम कुबेर दिगपाल जहां ते ।
कवि कोविद कहि सके कहां ते ॥ 15 ॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥ 16 ॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥ 17 ॥
युग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ 18 ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही ।
जलधि लांघि गये अचरज नाही ॥ 19 ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ 20 ॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ 21 ॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरणा ।
तुम रक्षक काहू को डर ना ॥ 22 ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हांक ते कांपै ॥ 23 ॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै ।
महवीर जब नाम सुनावै ॥ 24 ॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत वीरा ॥ 25 ॥
संकट से हनुमान छुडावै ।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥ 26 ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥ 27 ॥
और मनोरध जो कोयि लावै ।
तासु अमित जीवन फल पावै ॥ 28 ॥
चारो युग प्रताप तुम्हारा ।
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29 ॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30 ॥
अष्ठसिद्धि नव निधि के दाता ।
अस वर दीन्ह जानकी माता ॥ 31 ॥
राम रसायन तुम्हारे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32 ॥
तुम्हरे भजन रामको पावै ।
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥ 33 ॥
अंत काल रघुपति पुरजायी ।
जहां जन्म हरिभक्त कहायी ॥ 34 ॥
और देवता चित्त न धरयी ।
हनुमत सेयि सर्व सुख करयी ॥ 35 ॥
संकट क(ह)टै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल वीरा ॥ 36 ॥
जै जै जै हनुमान गोसायी ।
कृपा करहु गुरुदेव की नायी ॥ 37 ॥
जो शत वार पाठ कर कोयी ।
छूटहि बंदि महा सुख होयी ॥ 38 ॥
जो यह पडै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीशा ॥ 39 ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ 40 ॥
दोहा
पवन तनय संकट हरण - मंगल मूरति रूप् ।
राम लखन सीता सहित - हृदय बसहु सुरभूप् ॥
सियावर रामचंद्रकी जय । पवनसुत हनुमानकी जय ।
--Ratnesh-Jansagar News